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चन्द्रकान्ता महाविद्यालय

अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के अवसर पर संगोष्ठी का आयोजन*
आज दिनांक10/12/2020को चन्द्रकान्ता महाविद्यालय के सेमिनार हाल में मानवाधिकार के अवसर पर एक संगोष्टि का आयोजन किया गया। सर्वप्रथम महाविद्यालय के प्रांगण में समस्त छात्र छात्राओं को मानवाधिकार की शपथ दिलाई गई तथा बच्चों से योग भी कराए गए जो जिला विद्यालय निरीक्षक बुलंदशहर द्वारा प्रेषित किया गया था इस अवसर पर बोलते हुए कॉलेज के प्राचार्य डॉ विप्लव ने कहा कि पहले मानव धर्म का प्रादुर्भाव हुआ लोगों में संत महात्माओं ने कहा कि मानव मानव की सेवा करें यह धर्म है मुस्लिम धर्मावलंबियों ने कहा खुदा के बंदों से प्यार करो ईशा ने कहा मनुष्य मात्र से प्रेम करो यही आज के मानव अधिकार का प्रारंभ है तदुपरांत जब लोग धर्म की अवहेलना करने लगे तब कर्तव्य शब्द का आविर्भाव हुआ शासक वर्ग शासित वर्ग से कहते हैं कि यह तुम्हारा कर्तव्य है कि मानव मात्र से प्रेम करो उसकी सहायता करो जब लोग कर्तव्यों के प्रति भी उदासीन होने लगे तब अधिकार शब्द आया वर्तमान मानवाधिकार की यही पृष्ठभूमि है मानव अधिकार की भावना का उदय सभ्यता के साथ ही हो गया था मनुष्य प्राणियों में श्रेष्ठ इसलिए माना जाता है कि उसमें बुद्धि है और बुद्धि के प्रयोग से वह स्वस्थ की तथा दूसरों की सुख सुविधाओं के बारे में भी सोचता है इस परोपकारी सोच के कारण ही मनुष्य प्राणियों में सिरमौर तथा सभ्यता लाता है जैसा कि सर्वज्ञात है कि 10 दिसंबर, 1948 को संयुक्त राष्ट्रसंघ की महासभा के द्वारा मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा की गई और उसे स्वीकृत किया गया। फिर 1950 में 10 दिसंबर को प्रत्येक वर्ष अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस के रूप में मनाने की घोषणा हुई। भारत में संयुक्त राष्ट्रसंघ की घोषणा के 45 वर्षों के बाद 25 जून, 1993 को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन हुआ और बिहार में उसके लगभग 15 वर्षों के बाद 25 जून, 2008 को मानवाधिकार आयोग का गठन किया गया। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानवाधिकार के प्रति संवेदना की स्वीकृति के उपरांत अनेक संगठन एवं व्यक्ति मानवाधिकारों की रक्षा के लिए संवेदित हुए और अनेक स्थलों पर मानवाधिकार के हनन पर सवाल उठाने लगे और उसके लिए संघर्ष करने लगे। मानवाधिकार के रक्षकों के द्वारा इस तरह मुद्दों को उठाने और संघर्ष करने के परिणामस्वरूप अनेक समस्याएं हल भी हुईं। लेकिन इसके साथ ही मानवाधिकार के रक्षकों पर हमले भी बढ़ गए। प्रशासन, पुलिस, नेता और दबंग, जो विभिन्न प्रकार की प्रताड़नाओं के जनक और मानवाधिकारों के हनन के जिम्मेवार होते हैं, वे आवाज उठानेवाले इन रक्षकों को ही विभिन्न प्रकार के षडयंत्र में फंसाने और उन्हें मानसिक, शारीरिक, सामाजिक, कानूनी प्रताड़ना का शिकार बनाने लगे। मानवाधिकारों की रक्षा के लिए प्रयत्नशील इन रक्षकों को अपनी जान तक गंवानी पड़ी है।
अर्थशास्त्र के विभागाध्यक्ष डॉ आशुतोष उपाध्याय ने बताया कि सन् 2000 में संयुक्त राष्ट्रसंघ के द्वारा मानवाधिकार रक्षकों के लिए विशिष्ट जनादेश लाया गया, जिसे "Special Rapporteur on Human Rights Defenders" कहा गया। मानवाधिकार रक्षक उन्हें माना गया, जो किसी भी प्रकार के मानवाधिकार की रक्षा और विकास के लिए कार्य करते हैं। और, इन मानवाधिकार रक्षकों की रक्षा का दायित्व राज्य को सौंपा गया। तभी से 10 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस के एक दिन पूर्व 9 दिसंबर को मानवाधिकार रक्षक दिवस (Human Rights Defenders Day) मनाया जाता है।
डॉ आशुतोष ने बताया कि जो राज्य स्वयं मानवाधिकार को प्रदान करने में कोताही करता है और जिसके सेवकों की संलिप्तता मानवाधिकारों के हनन में होती है, वह राज्य मानवाधिकार रक्षकों की रक्षा में क्यों अभिरुचि दिखाएगा? यदि राज्य अपने दायित्व से हाथ खींचता है तो कौन - सी वह सहायक व्यवस्था हो, जो इन मानवाधिकार रक्षकों का हौसला आफजाई करे, उनकी सहायता करे और उन पर कोई आपदा आने पर उनकी रक्षा का उपाय ढूंढ़ सके।
संगोष्ठी में विभिन्न वक्ताओं ने मानवाधिकार के आयामों, उसके हनन के विभिन्न पक्षों, मानवाधिकार रक्षकों पर हमलों के अनेक संदर्भों का उल्लेख करते हुए मानवाधिकार पर कार्य करने वाले संगठनों और कार्यकर्ताओं के एसोसिएशन की आवश्यकता जताई।
संगोष्ठी की अध्यक्षता संजय ने की। स्वागत श्री मनोजजी ने किया। मंच का संचालन हारून खान ने किया।कु अंक ने कहा कि वर्तमान युग में लोकप्रिय होती जनतंत्र प्रणाली व लोक कल्याणकारी राज्य के सिद्धांत में महिला विकास का मार्ग भी प्रशस्त हुआ है अतः उन्हें सुसुप्त अवस्था से जागृत करने के लिए कई समाज सेवक व बुद्धिजीवी वर्ग सामने आए कानूनी प्रावधान व योजनाएं बनी स्वैच्छिक संगठनों ने पहल की तब जाकर कुछ महिलाएं अपने अधिकारों के प्रति जागृत हुई आज वर्तमान स्वरूप उसी का जीता जागता उदाहरण है विचार गोष्टि में महाविद्यालय के समस्त आचार्यो ने अपने विचार रखे।संगोष्ठी में अनेक गणमान्य लोग उपस्थित थे।