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प्रेसविज्ञप्ति/प्रकासनार्थ...
....छात्रों की प्रतिभा को विकसित कर उन्हें जिम्मेवार नागरिक बनावें यही गाँधी के प्रति सच्ची श्रद्वांजली होगी-डॉ विप्लव ...........
चंद्रकांता महाविद्यालय, पिरबियावानी,बुलंदशहर में प्राचार्य डॉ विप्लव ने कहा कि शिक्षक का दायित्व है कि वह छात्रों की प्रतिभा को विकसित कर उन्हें जिम्मेवार नागरिक बनावें यही गाँधी के प्रति सच्ची श्रद्वांजली होगी।
वे आज महात्मा गाँधी की जयंन्ती समारोह के अवसर पर अहिंसक हिंसा और गाँधी विषय पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित करते हुए उक्त बातें कहीं। उन्होंने कहा कि आज का दिन एतिहासिक है जिस दिन महात्मा गाँधी एवं लाल बहादुर शास्त्री जैसे देश के महापुरूषों ने जन्म लिया। हमारे लिए यह गौरव की बात है कि ऐसे महापुरूषों को स्मरण करने का मौका मिला है। आज गाँधी जी देश में ही नही अपितु विदेशों मे भी प्रासंगिक हो गए है। विश्व मेें शांति गाँधी के दर्शन के ही संभव हो सकता है। गाँधी मात्र विचार नहीं है अपितु एक दर्शन है। इसे जीवन में उतारने की समय की पूकार है। महात्मा गाँधी का अहिंसा दर्शन हमें युद्धोन्माद से बचाता है । वह विश्व बंधुत्व, शांति और सह-अस्तित्व की सिख देता है। उन्होंने कहा कि छात्रों के बीच बराबर शैक्षणिक प्रतियोगिता के आयोजन की आवश्यकता है। जिससे शैक्षणिक उर्जा का विकास होगा। उन्होंने कहा कि इस तरह के आयोजन स्नातक स्तर तक ही सीमित नही रहेगा। बल्कि महाविद्यालय स्तर पर भी इस तरह का आयोजन किया जाएगा। छात्रों की वर्गो में कम उपस्थिति हमारे लिए एक चुनौती है। इस चुनौती पर कैसे फतह किया जाएगा इसके लिए मिल जुलकर कार्य करना पड़ेगा। शिक्षक छात्र तथा अभिभावक के बीच समन्यवय स्थापित करना होगा।
संगोष्ठी को संबोधित करते हुए हिन्दी विभाग के प्राध्यापक डाॅ. संजीव कुमार ने कहा कि हमारे ऋषि मुनि बड़े ही दूर दृष्टा थे जिन्होंने हिंसा के समय में अहिंसा का अविष्कार किया। यह अविष्कार न्युटन के अविष्कार से भी बड़ा है। गाँधी के जीवन में हिंसा का कोई स्थान नहीं था। उन्होंने अपने जीवन के सभी प्रयोगों में अहिंसा का ही स्थान दिया। इतिहास रक्तों से भड़ा-पड़ा है। किन्तु गाँधी के आदोेंलन में खुन का एक कतरा भी नहीं बहा। गाँधी अपने दर्शन में समाज कि स्थापना मूल्यों पर करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि औद्योगिक क्रांन्ति के कोख से जिस प्रोद्योगिकी का आना शुरू हुआ उसमें सूविधा उत्पादकता वृद्धि के तर्को से धीरे-धीरे प्रकृति के लय के साथ मिलकर चलनेवाली जीवन शैली को खत्म करना शुरू किया। मनुष्य मशीनों की गुलामी में जकड़ता गया। जिसका परिणाम है पर्यावरण संकट । गाँधी मशीनों के प्रयोग के विरोधी नही थे। बल्कि उनका विरोध था उस मशीनीकरण से जो आदमी को उसका गुलाम बना देता है। हाथ पैर के श्रम से वंचित कर बेकार एवं बेरोजगार बना देता है। संगोष्ठी को संबोधित करते हुए डॉ आशुतोष उपाधयाय ने कहा कि गाँधी जी की स्वच्छता में सिर्फ गंदगी की सफाई नहीं है। बल्कि मन की स्वच्छता भी है। गाँधी जैसे महापुरूषों का अनुकरण युवाओं को करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि गाँधी के प्रति सच्ची श्रद्धाजली तभी होगी जब हम वातावरण एवं मन को स्वस्थ रखेंगे। उन्होंने विद्यालय परिसर को स्वच्छ रखने में सहयोग करने का आह्वान किया। इस अवसर पर हारून खान ने कहा कि गाँधी के प्रति सच्ची श्रद्धांजली तभी होगी जब हम छात्रों को वर्ग तक ला सकेंगे। जिसमें छात्र, शिक्षक एवं अभिभावकों की महत्वपूर्ण भूमिका हैं। आगत अतिथियों का स्वागत करते हुए हिन्दी विभागाध्यक्ष डाॅ.संजीव कुमार ने कहा कि गाँधी जयंती के अवसर पर एक सार्थक पहल किया गया है। धन्यवाद ज्ञापन अंजू सिंह ने किया, मंच संचालन कार्यक्रम डॉ प्रेम सिंह ने किया।