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चन्द्रकान्ता महाविद्यालय

नागरिकता संशोधन अधिनियम राजनीतिक चेतना से शून्य समाज के लिए बेहतर हो सकती है.प्रो0 मृदुल कुमार गुप्ता*
आज दिनांक11/1/2020 को चंद्रकांता महाविद्यालय पिरबियावानी, बुलंदशहर के सेमिनार हाल में नागरिक संशोधन अधिनियम पर कॉलेज के छात्रों को जागरूक करने के लिए एक सेमिनार का आयोजन किया गया,जिसकी अध्यक्षता चौधरी चरणसिंह विश्वविद्यालय मेरठ के प्रो0 मृदुल कुमार गुप्ता एवं मुख्य वक्ता प्रो0एस0के0त्यागी रहे
अपने उदबोधन में प्रो0गुप्ता ने कहा कि नागरिकता संशोधन अधिनियम की अधिसूचना जारी हो गई।कुछ लोगों ने कहना शुरु कर दिया था कि देशभर में इस क़ानून के खिलाफ हो रहे आंदोलनों के चलते सरकार इसकी अधिसूचना जारी करने का साहस नहीं उठा पा रही है।अब शायद वे अपनी राय बदलें।क़ानून को लेकर मतभेद हो सकते हैं, किंतु यह बात स्पष्ट है कि सरकार अपने इरादों पर क़ायम है और उसका स्पष्ट ऐजेंडा है।यह भी कि चाहे धारा 370 को निष्प्रभावी बनाना हो या फिर तीन तलाक़ विरोधी क़ानून,सरकार ने इन सब पर पर्याप्त होमवर्क करने के बाद ही ये क़दम उठाए हैं।भारत में लंबे समय से सरकारी रवैय्या कमज़ोर और ढुलमुल रहा है,जिससे लोगों को लगने लगा था कि ज़रूरत पड़ने पर भी सरकार कोई ठोस क़दम नहीं उठा रही है।मुंबई ब्लास्ट, विपक्ष द्वारा संसद को अकारण शोर शराबे का अड्डा बनाना,संसद को न चलने देना।ऊलजुलूल आरोप लगाकर सरकार की छीछालेदर करना।बिना किसी सबूत के झूठे स्कैम पैदा करना और सरकार द्वारा विनम्रतापूर्वक यह सब होते देना।एक व्यापारी बाबा का स्वागत करने स्वयं प्रधानमंत्री का एयरपोर्ट तक जाना।और तो और मनरेगा जैसी दुनिया की सबसे बड़ी रोजगार योजना को बिना प्रचार चलाना।सूचना का अधिकार या शिक्षा का अधिकार देने के लिए क़ानून बनाना पर श्रेय न ले पाना,यह सब पूर्व सरकार की शालीनता का नहीं बल्कि मूढता और निष्क्रियता के चिह्न माने गए।
प्रो0एस0के0त्यागी ने कहा कि वर्तमान सरकार नेबर्मा,बांग्लादेश, नेपाल और पाकिस्तान में घुसकर भी भारत विरोधी शक्तियों को दंडित करके यह स्पष्ट संदेश दे दिया कि सरकार गंभीर है और फ़ैसले ले सकती है।भारतीय माडल के लोकतंत्र के लिए संभवतः यह स्थिति बेहतर है।बीस बाईस रुपये रोज़ पर जीने वाले बहुसंख्य हिंदुस्तानी या फिर दिनरात अपने और अपनी औलादों के लिए कुछ और सुविधाएं व सुरक्षा खोजता मध्यवर्ग पश्चिमी लोकतांत्रिक ढंग की सरकारों सी पारदर्शिता या विकेंद्रित व्यवस्था में अपनी भागीदारी की योग्यता नहीं रखता।सच तो यह है कि मंहगे आलू-प्याज की बातें छोड़ दें तो औसत हिंदुस्तानी की लोकतंत्र में सक्रिय भागीदारी कोई इच्छा भी नहीं है।ऐसे में अच्छा हो कि लोकतंत्र में उसकी भूमिका वोट देने तक सीमित रखी जाए और देश को चलाने की जिम्मेदारी मजबूत कारपोरेट और उन्हीं के चाकर सांसदों को सौंप दी जाए।
नागरिकता संशोधन क़ानून और ऐसे सभी क़दम जिनसे नागरिकों की संख्या, परिचय आदि की जानकारी हासिल की जा सके,सरकार के सामान्य कार्य व्यवहार का हिस्सा है।इनका विरोध करने के लिए विपक्ष पर पर्याप्त तर्क भी नहीं थे।विपक्ष का हथियार आमलोगों ख़ासकर मुसलमानों की जहालत और असुरक्षा रही है।विरोध सिर्फ़ सरकार के सामने अपने होने का प्रमाण देने के लिए आंदोलन चला रहा है।अच्छा हो विपक्ष बेहतर होमवर्क करके पहले भारत के भविष्य के लिए कोई स्पष्ट रोडमैप तैयार करे,और उसके आधार पर लोगों को साथ लेकर चलने की कोशिश करे।ख़ुद को आरपार की लड़ाई के लिए तैयार करे।जो आंदोलन मज़बूत तर्कों की बुनियाद के वग़ैर और सिर्फ़ भावनाओं को भड़काकर खड़े होते हैं,उनकी आयु अधिक नहीं होती।सरकार चाहती तो समझौता करके क़ानून को वापस ले सकती थी लेकिन दबाव में आने के बजाय अधिसूचना जारी करके सरकार ने अपने इरादे स्पष्ट कर दिए हैं, सही हो ग़लत सरकार हर क़दम सोच विचारकर,होमवर्क करके और मजबूत इरादों के साथ उठा रही है।यह स्थिति अंततोगत्वा राजनीतिक चेतना से शून्य समाज के लिए बेहतर हो सकती है.
कॉलेज के प्राचार्य डॉ0 विप्लव ने दोनों वक्ताओं का आभार व्यक्त किया,इस अवसर पर महाविद्यालय के समस्त शिक्षक मौजूद रहे