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यह समय असुरक्षाओं और अनिश्चितताओं का है।काल रुपी कोरोना ने इस ग्रह की स्थापित परंपराओं,अवधारणाओं और शैलियों को चुनौती दे दी है।स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानने के दंभ को भी।वो सब कुछ जिसे ‘उपलब्धि ‘ माना गया,अब विमर्श में है।पिछली लगभग पाँच सदियाँ मानव की युगयात्रा में फ़र्राटा दौड़ की तरह रही हैं।जहाँ विजेता अन्य प्रतिभागियों से बहुत आगे निकल गए और जो पिछड़ गए उन्हें अर्थहीन और अनावश्यक समझकर हाशियों में धकेल दिया गया।उनकी भूमिका श्रेष्ठताओं को रेखांकित करने भर की रह गई।विजेताओं की जीत पर तालियाँ बजाने और उनके दंभ को पोषित करते हुए,स्वयं को मनुष्य से निचले स्तर का प्राणी होना स्वीकार करने के अतिरिक्त उनके पास करने को कुछ शेष नहीं रहा।
फिलहाल इस ग्रह के संपूर्ण संसाधनों,(विशेषकर प्राकृतिक और मानव संसाधन)पर मात्र एक-डेढ़ प्रतिशत श्रेष्ठ समझे जाने वाले लोगों का निर्णायक नियंत्रण है।घातक हथियारों से इस धरती को दस हज़ार बार नष्ट करने की क्षमता रखने वाले देश जो अंतरिक्ष में इससे भी अधिक ख़तरनाक अस्त्रों को तैनात कर रहे थे ,आज अपने सर्वोच्च को सिंहासन बचाने की असफल चेष्टा कर रहे हैं।विश्व बाज़ार के आढ़तियों की पकड़ कमज़ोर हो रही है।हथियारों,तेल,और मानवीय विवशताओं को लेकर यत्न से चुनी गई भयावह इमारत अब चरमरा रही है।निश्चय ही जब अनावृत हो चुके षड्यंत्रों पर खड़ा ये आसुरी दुर्ग ढहेगा तो इस ग्रह पर जीवन को भी बहुत बड़े स्तर पर नष्ट करेगा।इस सबके बावजूद होनी तो होकर रहै...
इस दौरान नदियाँ,हवाएं,पक्षी और कुल मिलाकर मनुष्य के इतर जीवन जहाँ भी है,वहाँ ये उत्सव का अवसर है।
जीवन की सुगंध इन्हीं से फैल रही है,पूरे उमंग और उत्साह के साथ।महत्वपूर्ण यह है कि जो तत्व और प्राणी इस समय उत्सव मना रहे हैं,उनका कालबोध श्रेष्ठ कहे जाने वाले मनुष्यों से भिन्न है।वे बस इस क्षण को पूरी सघनता के साथ जी रहे हैं।एक बार फिर से यह स्मरण कराते हुए कि जीवन की कोंपलें तो सिर्फ़ असुरक्षा और अनिश्चितता में ही खिलती हैं।सुरक्षाएं और निश्चिंतताएं जीवन के लक्षण तो नहीं।जीवित फूलों में जीवन,निशर्त सुगंध बिखेर रहा है।भविष्य की सभी चिंताओं से मुक्त नदी की मछलियाँ इस क्षण को जीती हुई अठखेलियाँ कर रही हैं।नदी के एक किनारे पर खड़े निस्पंद पत्थर निश्चिंत हैं,सुरक्षित भी।लेकिन जीवन क्या ऐसी सुरक्षा चुनेगा?कोरोना इस जीवनदृष्टि के गिद्धावलोकन का अवसर भी दे रहा है।एकांत में आत्मानुसंधान का अवसर भी।हालांकि ‘श्रेष्ठ’प्राणी अवसरों को प्रायः गँवाते ही रहे हैं |
इसी उठापटक के बीच चंद्रकांता महाविद्यालय पीर बियाबानी बुलंदशहर ने अपनी पत्रिका का आज शुभारंभ किया है जिसका शीर्षक है चंद्रकांता अभिव्यक्ति आज महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ विप्लव ने अपने सहयोगी मोहम्मद हारुन खान एवं श्री मनोज कुमार जी को यह पत्रिका भेंट कर महाविद्यालय की कोविड के दौरान समस्त कार्यों एवं किसी भी सहयोगी द्वारा जो सामाजिक कार्य किए गए उन सब की अभिव्यक्ति यह पत्रिका चंद्रकांता अभिव्यक्ति है