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चन्द्रकान्ता महाविद्यालय

कृषि कानूनों के लिए जनचेतना आवश्यक -डॉक्टर अनिल सिंह*
आज दिनांक 29/1/2021 को चंद्रकांता महाविद्यालय पीर बियाबानी बुलंदशहर में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया इस संगोष्ठी के मुख्य वक्ता डॉ अनिल सिंह थे अपने उद्बोधन में डॉक्टर अनिल सिंह ने बताया कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का योगदान लगभग 14 प्रतिशत है,यानि औद्योगिक और सेवा क्षेत्रों मुक़ाबले लगभग आधा।जब आज़ादी मिली थी तो कृषि क्षेत्र का योगदान 53 प्रतिशत था।जब सकल घरेलू उत्पाद का आधे से ज़्यादा कृषि क्षेत्र से आता हो ,तो उस वक़्त इसे नज़रंदाज़ करना सरकारों के लिए नामुमकिन था।आज वैसी स्थिति नहीं है।
एक और सच्चाई यह है कि कुल आबादी का 55प्रतिशत और कुल श्रमशक्ति का 60 प्रतिशत आज भी कृषि क्षेत्र से जुड़ा है।सात दशकों में कुछ लोग पेट्रोल पंपों पर तेल भरते-भरते विश्व के सबसे अमीर लोगों में शामिल हो गए।सरकारें और संसद उनकी ताबेदार बन गईं।वहीं देश की आधे से अधिक आबादी असंगठित क्षेत्र में काम करने की वजह से न्यूनतम मज़दूरी से भी वंचित रही।दूसरे विश्वयुद्ध के बाद आज़ाद हुए लगभग साठ देशों में कहीं भी ऐसी विषमता दिखाई नहीं देती।
पहला आँकड़ा सरकारों के लिए महत्वपूर्ण है,जिसके आधार पर वह अपने मंसूबे गाँठती है,दूसरे के बूते पर आंदोलनकारी किसान सरकार ख़म ठोंकते हुए ,सरकार को चुनौती दे रहे हैं।सरकार इतने बड़े वोटबैंक को नाराज़ करने का जोखिम उठाने को तैयार नहीं है।आबादी के इतने बड़े हिस्से को नाराज़ करके सत्ता में बने रहना मुश्किल है।सच तो यह है कि अब किसानों की सभी माँगें मानने को सरकार राज़ी है,लेकिन सरकार के विरोधी उसे घुटनों पर बैठकर गिड़गिड़ाते हुए देखना चाहते हैं।
भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहने वाले और ख़ासकर दक्षिण एशिया की एकमात्र कामयाब डेमोक्रेसी का तमग़ा देने वाले सुधि लोगों को यह भी याद रखना चाहिए कि यह सरकार सूचना के अधिकार जैसे प्रभावी कानून को पहले ही बेअसर कर चुकी है।इसी कानून के बूते लोगों में अभूतपूर्व चेतना जगी थी।सरकार के निर्णयों में पारदर्शिता आनी शुरू हुई थी।सत्तारूढ़ दल जब विपक्ष में था तो अनेक घोटालों के लिए उसने महीनों तक संसद का चलना असंभव कर दिया था।
भारत के आर्थिक संसाधन असीमित नहीं हैं।आबादी का बड़ा हिस्सा बुनियादी सुविधाओं से जूझ रहा है और देश में सामाजिक सुरक्षा घेरा भी बहुत क्षीण है।यद्यपि सरकार लगभग अस्सी करोड़ लोगों को मुफ़्त अन्न के साथ थोड़ा बहुत पैसा देकर किसी तरह उबरने की कोशिश कर रही है किंतु यह आँकड़ा हालात की गंभीरता को भी उजागर कर रहा है। स्थिति की भयावहता के चलते ये सब ऊँट के मुँह में ज़ीरा ही है।इसके बावजूद कि भारत भयंकर आर्थिक संकट से गुजर रहा है,भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथियार क्रेता देश है।रूस,फ़्रांस और अमरीका समेत अनेक देशों की कमजोर होती अर्थव्यवस्थाओं को भारत से मिले रक्षा समझौतों की बदौलत संबल मिला है।अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में बिना कुछ लिए कोई देश आपकी सहायता नहीं करता।सरकार खुले हाथों से व्यय कर रही है,शायद अपनी क्षमताओं और साधनों से बहुत ज़्यादा ।बड़े-बड़े सार्वजनिक इदारों की अकूत संपत्तियाँ कौड़ियों के भाव बेची जा रही हैं।सरकार के विरोधी इस सब पर भी नज़र रखे हुए हैं।
उन्होंने डॉ विप्लव की पुस्तक मूल शंकर का विप्लव चौराहे पर का विमोचन भी किया ।
कार्यक्रम के अंत में प्राचार्य डॉ विप्लव ने सबका आभार व्यक्त किया एवं आए हुए महानुभावों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया